Monday, July 12, 2010

ठान लो तो क्या संभव नहीं

कोटा के किशोर तालाब के दो अलग-अलग दृश्य






हिन्दुस्तान के कुछ शहर तो वाकई बहुत ही खूबसूरत व अत्यन्त ही व्यवस्थित तरीके से बसे हैं। वहीं कुछ शहर तो मानो गंदगी के पर्याय हैं। प्रकृति ने हमें जिन्दगी नाम का एक अनुपम उपहार दे रखा है। इस उपहार का उपयोग हम कैसे करते हैं, यह हमीं पर निर्भर हैं। हर व्यक्ति अपनी जिन्दगी को अपने-अपने ढंग से बेहतर बनाने की कोशिश करता है। कुछ की कोशिश कामयाब रहती है तो कुछ नाकाम रहते हैं। नाकाम अक्सर वे ही होते हैं जो स्वार्थपूर्ण तरीके अपनाते हैं या गलत तरीके आजमाते हैं। कई बार हम अपने लिए न केवल पड़ोसी बल्कि पूरे शहर को नरक बना डालते हैं। इससे खुद की जिन्दगी तो उजाड़ होती ही है, पूरे शहर को नरक और बना देती है।

पहले के आलेखों में मैंने बीकानेर व उदयपुर का जिक्र किया था। कोशिश करता हूं कि जहां मैं रहता हूं उसके बारे में ही कुछ कहूं। इस बार की गर्मियां कोटा में कटी। बारिश दे चुकी है। वैसे राजस्थान में पानी के लिहाज से कोटा सबसे सम्पन्न जिला है। यहां की चम्बल न केवल कोटा को, बल्कि दूसरे शहरों की प्यास भी बुझाती है। यहां का पानी दूसरे राज्यों की कमी भी पूरी करता है। कोटा से जुड़ाव मेरा बरसों से रहा है। खासतौर से पारिवारिक। मेरा पूरा परिवार कोटा से जुड़ा हुआ है। बचपन से यहां आना जाना रहा है, इसलिए यहां की हर जगह मुझे सदैव जानी-पहचानी व अपनी-अपनी सी लगती है। यहां के नारकीय हालात नहीं देखे जाते। कभी कोटा में घूमते थे तो सुखद अहसास होता था। हरे-भरे पेड़ों से लकदक रहा यह शहर अब उजाड़ हो चला है। यहां के तालाब खत्म होते जा रहे हैं। सरकार व प्रशासन इस मामले में बिल्कुल नकारा साबित हुए हैं। जनता भी कम नहीं है। कभी अन्याय के खिलाफ कोई आवाज नहीं उठाती। यहां के जनप्रतिनिधि यहां देवता की तरह पूजे जाते हैं। भले ही वे कुछ भी कर ले, जनता उन्हें पूरा सम्मान देती है। ये ही कारण है कि कोटा की बरबादी होती जा रही है

इस शहर में एक अत्यन्त ही समृद्ध तालाब रहा है किशोर सागर। इसके किनारे बैठकर कभी ऐसा नहीं लगा कि सुकून नहीं मिले। लेकिन पिछले कुछ दशकों से इस तालाब की जो गत हुई है उससे बहुत निराशा होती है। यह तालाब इस शहर का हृदय है। इसी तालाब के किनारे बैठकर लोग सुबह ताजा हवा लेते रहे हैं। इसी तालाब के किनारे बैठकर लोग सुनहरे पल बिताते रहे हैं। ये वहीं तालाब है जिसके कारण कभी कोटा जाना पहचाना जाता रहा है। फिर क्यों एकाएक इसकी उपेक्षा शुरू हो गई? क्यों किसी ने इसकी सार-संभाल नहीं की? इस तालाब पर कहने को तो करोड़ों रुपए खर्च हुए हो, पर वे नजर ही नहीं आते। जनता मूक प्राणी की तरह सब झेलती रहती है।

मैं जिस अखबार में काम करता हूं, जिन संस्थाओं से जुड़ा रहता हूं, जिन लोगों से जुड़ा रहता हूं वो अक्सर सामाजिक सरोकारों की बात करते है और उसी से अपने जीवन को सुंदर व उद्देश्यपूर्ण बनाते हैं। राजस्थान पत्रिका एक ऐसा अखबार है जो न केवल लोगों तक खबरें पहुंचाता है, बल्कि साल भर कोई न कोई ऐसे काम करता रहता है जिससे समाज को, व्यक्ति को राहत पहुंचे। मैं जहां भी रहा, मुझे राजस्थान पत्रिका जैसा मंच मिला। मुझे इस आदर्श मंच के जरिए कुछ काम करने का अवसर भी मिला। उदयपुर में मेरी टीम ने अमृतम् जलम् अभियान के तहत गत वर्ष जो काम पिछोला झील में किया था, उससे मेरे मन को बहुत संतुष्टि मिली। मैं उम्मीद करता हूं कि अब गणगौर घाट पर अधिक दिनों तक पानी रहेगा। लोगों को नौकायन से वंचित नहीं होना पड़ेगा। इससे पहले उदयपुर की टीम ने मदार नहर का काम भी किया था। ये कार्य वहां की जनता के सहयोग से संभव हुए, अन्यथा इतने बड़े पैमाने पर ये असंभव था।

इस बार कोटा में अवसर मिला। वह भी एक शहर के हृदयस्थल किशोरसागरकी सेवा करने का इस विशाल तालाब किशोर सागर के पेटे में उतरे तो पता चला कि इसका काम वाकई कठिन है, लेकिन जिस तरह यहां के लोगों ने हाथ बढ़ाया, काम आसान लगने लगा। मात्र एक माह में कोटा के लोगों ने जो कर दिखाया वो तारीफे काबिल है। इस तालाब के निर्माण के बाद वैसे कई बार पहल हुई, लेकिन पहली बार इतने बड़े पैमाने पर नागरिकों के सहयोग से गीत भवन के एक छोर पर सफाई की गई।


पूरे माह चले इस अभियान में हर वर्ग का जुड़ाव हुआ है। इससे लगता है कि उन्हें अपने इस प्राचीन तालाब की फिक्र तो है। सवेरे छह बजे से ही लोग इस तालाब पर जुट जाते और हाथों में फावड़े तगारी उठाकर तालाब में उतर जाते। लगातार दो घंटे श्रमदान के बाद उन्हें जिस संतुष्टि का अहसास होता, उसे शायद उन्होंने पहले कभी अनुभव नहीं किया। ये तो एक बानगी भर है। ऐसे कई किशोर सागर तालाब इस देश में हैं, जिन्हें फिर से संवारा जाना चाहिए। जनता तो तैयार है, सवाल उन्हें जगाने भर का है।


जय श्रीकृष्णा

2 comments:

  1. Namste sir
    Aap ne sahi likha 'Agr than liya jaye to har cheeg mumkin hai'. Itne acchee post ke liye sadhuvaad...

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  2. शुक्रिया अरुणजी,, मुझे अच्छा लगा कि आप मेरा ब्लाग पढ़ते हैं। हालांकि व्यस्तता के चलते मैं इसके लिए समय कम ही निकाल पाता हूं..

    राकेश गांधी

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