Monday, June 15, 2009


यह फोटो राजस्थान पत्रिका के बीकानेर के ख्यात छायाकार अजीज भुट्टो ने लिया था। संयोग से मुझे भी इस भयानक आंधी से रू-ब-रू होने का मौका मिला। धूल का ये गुबार जब मैं बीकानेर में था कोई तीन चार बार मुझ पर से निकला होगा। किसी अनजान को तो ये फोटो देख कर एसा लगता होगा कि शायद इसके बाद बचता क्या होगा। लेकिन एसा नहीं है। इस गुबार के निकलने के बाद होने वाली बारिश से एसा लगता है जैसे आप साबून से खूब मल मल कर नहाए हैं। ये मिट्टी प्रकृति से प्राप्त बेहतरीन आनन्द का आभास कराती है। जिसने इसे महसूस किया उसे ही इसका आभास हो सकता है। किसी बीकानेरवासी से ही पूछ कर महसूस किया जा सकता है। अप्रेल-मई-जून माह में बीकानेर में एसे दृश्य कई बार बनते हैं। ये पूरे शहर को अपनी आगोश में ले लेते है और फिर प्यार से दुलारते हैं और फिर उनके पीछे पीछे चल रहे बादल अमृत की फुहार से इन बीकानेरवासियों को किसी बच्चे की माफिक नहला जाते है और फिर आने का वादा कर लम्बे समय के लिए तरोताजा कर जाते हैं। सचमुच ये किसी आश्चर्य से कम नहीं है।
जयश्री कृष्णा, जय जगत्।

3 comments:

  1. सर
    वास्‍तव में सही कहा। मैने भी इस फोटो को अखबार में देखा तो सोचा कि इसके बाद शहर का क्‍या हुआ होगा लेकिन बाद में पता चला कि यह तो रोज का नजारा है। इसे वहां रहने वाला ही महसूस कर सकता है। रेगिस्‍तानी इलाका है तो वहां यह आम है। झीलों के शहर में ऐसे नजारें देखने को नहीं मिलते। यहां तो जब पानी हिलारे मारता है तो किनारे बैठे लोगों को इसका आनंद ही कुछ अलग ही मिलता है।

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  2. sir,
    maine kabhi aisa nazaraa dekha nahi lekin padkar uska ahasaas jarur kar raha hu. god se prarthna karta hu ki aise nazaraa muje bhi dikhye

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  3. This photo is digitally created.

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