Thursday, June 4, 2009

प्रकृति और जीवन

प्रिय दोस्तों,
मेरे ब्लाग पर आपका स्वागत है, अभिनंदन है।
खासतौर से उनका जो प्रकृति से प्रेम करते हैं, उसका संरक्षण चाहते हैं।

ब्लाग पर आने की बिल्कुल इच्छा नहीं हो रही थी, लेकिन न जाने क्यों मुझे लग रहा था कि प्रकृति को बचाने के लिए क्यों न सुधि दोस्तों का एक समूह बनाया जाए, जो इसे बचाने का हर संभव प्रयास करते हों। मन में एक विश्वास था कि एक बार शुरुआत करके देखते हैं, कितने दोस्त जुट पाते हैं, जो इस प्रदूषित होते वातावरण से दुःखी है, जो चाहते हैं कि मनुष्य को ताजा श्वांस मिले, जो चाहते है कि कोई रोगी न हो, जो चाहते हैं कि कोई भी पेड़ कटने न पाए।
कोई वर्ष 1९८५ की बात है। मैं मेरे आदर्श डा एसएन सुब्बराव व नेमिचंद्र जैन भावुक के आह्वान पर बड़ौदा क्षेत्र के केवड़िया गांव में एक बांध क्षेत्र को हरा भरा बनाने के लिए वहां जुटे देश भर के करीब पच्चीस हजार लोगों के साथ शामिल हुआ था। वहां का माहौल देख कर मैं भाव विभोर था। वहां के प्राकृतिक सौंदर्य पर मैं फिदा हो गया था। उसके बाद मैने एक बार ठान ली कि क्यों न देश भर के एसे ही क्षेत्रों का दौरा किया जाए और कुछ एसे ही काम किया जाए। कालेज के छात्र थे, घूमने का आनन्द इस उम्र में कुछ अलग ही होता है, मुझ पर कुछ एसा ही भूत सवार था। फिर तो मैं मैसूर, उज्जैन, बंगलौर, मुंबई, मिर्जापुर समेत न जाने कितने शहरों में मैं घूमता रहा। वहां न केवल प्रकृति को मन में सहेजा, बल्कि भविष्य में भी इसी से जुड़े रहने का विचार बनाया। लेकिन परिवार की जिम्मेदारी के चलते एसा संभव नहीं हो सका।
करीब पच्चीस साल हो चुके हैं। मेरे मन में आज भी उस समय की सच्चे मन में सहेजी हुई बात जिंदा है, जो हर वक्त कुछ न कुछ करने के लिए प्रेरित करती है। जीवन व परिवार चलाने के लिए कई नौकरियां की... लेकिन प्रकृति को सहेज कर रखने की बात ने मेरा हाथ थामे रखा... जहां भी मैने काम किया... अनायास ही कोई न कोई काम मेरे हिस्से में आता चला गया और मैं प्रकृति का सान्निध्य पाता गया। प्रकृति की गोद में रहने का आनन्द हर किसी को नसीब नहीं होता। जब भी मौका मिले हमें नहीं छोड़ना चाहिए।
किस्मत भी देखिए, मुझे दोस्त भी मिले तो एसे जो प्रखर प्रकृति प्रेमी हैं। जिन्होंने मुझे कभी इससे दूर न होने दिया। नौकरियां भी मिली तो एसी कि मेरे हाथ में एसे काम अपने आप आते गए।
राजस्थान पत्रिका के साथ जुड़ने के बाद मैं जोधपुर व उसके बाद बीकानेर, भोपाल व अब बेहद ही खूबसूरत शहर उदयपुर में हूं। इसे मेरा सौभाग्य नहीं मानेंगे तो और क्या मानेंगे। यहां भले ही मैं अपना अधिकांश समय परिस्थितवश एक चैम्बर में गुजारता हूं, लेकिन जितना समय भी मुझे मिलता है मैं प्रकृति की गोद में लुढ़कने की कोशिश करता हूं।
ईश्वर मुझे शक्ति दे कि मैं किसी न किसी तरह प्रकृति की सेवा करता रहूं। आप सभी दोस्तों का सहयोग तो मिलेगा ही।
शेष अगली बार...
जय जगत, जय श्रीकृष्णा।

3 comments:

  1. बेहतरीन शुरुआत। आगामी लेखों का इंतजार रहेगा।

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  2. पर्यावरण को बचाने की ईमानदार पहल के लिए आप को साधूवाद। हम चिठ्ठाजगत के साथी इस मुहीम में आप के साथ हैं। उम्‍मीद है इस ब्‍लॉग के माध्‍यम से हम लोगों में पर्यावरण संरक्षण की अलख जगा सकेंगे।
    जल, अग्नि, वायु, पृ‍थ्‍वी, आकाश
    प्रदूषण की हैं चपेट में
    इन तत्‍वों से बना मानव शरीर भी है
    अब प्रदूषण की गिरफ्त...

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  3. बहुत उम्दा और अर्थपूर्ण शुरुआत के लिए बधाई और शुभकामनाएं.

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