सर यह ऐतिहासिक झील है, इसका यह हाल देखकर मन परेशान होता है,बचपन से इस झील से नाता है, क्यों कि इसी झील में छलांग लगाते और नहाते धोते इतने बड़े हो गए। तैरना नहीं आता था तो नजदीक नहीं जाते थे और जब इसमें ही तैरना आया तो पानी से बाहर निकलने की भी इच्छा नहीं होती थी। आज भी हजारों लोगों के मन में इस झील की यादें है, झील जब भर जाती है और शाम को जब घाट से सटे मंदिरों से पूजा के दौरान घंटिया बजती है तो गणगौर घाट पर बैठकर वहां का आनंद तो लीजिए, बहुत मजा आएगा।
ये हमारा लालच हमको कहीं का नहीं छोडगा। आज िपछोला की बारी है। कल हमारी होगी।
ReplyDeleteसर
ReplyDeleteयह ऐतिहासिक झील है, इसका यह हाल देखकर मन परेशान होता है,बचपन से इस झील से नाता है, क्यों कि इसी झील में छलांग लगाते और नहाते धोते इतने बड़े हो गए। तैरना नहीं आता था तो नजदीक नहीं जाते थे और जब इसमें ही तैरना आया तो पानी से बाहर निकलने की भी इच्छा नहीं होती थी। आज भी हजारों लोगों के मन में इस झील की यादें है, झील जब भर जाती है और शाम को जब घाट से सटे मंदिरों से पूजा के दौरान घंटिया बजती है तो गणगौर घाट पर बैठकर वहां का आनंद तो लीजिए, बहुत मजा आएगा।
भूपेन्द्रसिंह राव